दो गाँव के लड़कों की प्रेरक कहानी

उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव *भतडी चक भतड़ी , पोस्ट करहाँ , जिला मऊ* में दो साधारण परिवारों के लड़के रहते थे — **अजय** और **अनिल**। दोनों के घरों की आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं थी, लेकिन दोनों के दिल में एक ही सपना था — *कुछ बड़ा करना है, कुछ ऐसा जो पूरे गाँव का नाम रोशन करे।*



Er ANIL AND Er AJAY




During study 


कहानी शुरू होती है , जब दोनों ने **10वीं की परीक्षा** पास की। गाँव के दूसरे बच्चों की तरह वे भी चाहते थे कि आगे पढ़ाई करें, लेकिन मुश्किलें बहुत थीं — पैसे की कमी, साधनों की कमी, और समाज के सवाल।

फिर भी उन्होंने ठान लिया कि चाहे जैसे भी हो, पढ़ाई जारी रखनी है।


🎓 गोरखपुर की ओर पहला कदम


10वीं के बाद दोनों ने **गोरखपुर जाकर पॉलिटेक्निक** करने का निर्णय लिया। यही वो मोड़ था जहाँ से उनके संघर्ष की असली शुरुआत हुई।

गाँव से दूर, नए माहौल में, बिना किसी बड़े सहारे के — सिर्फ़ सपने और हिम्मत के साथ।


कई बार ऐसा हुआ कि पूरा दिन सिर्फ काली चाय और पार्ले-जी बिस्किट पर गुज़ारा। कई रातें बिना खाना खाए बीतीं। और जब पैसे खत्म हो जाते, तो वे पैदल ही कॉलेज तक की दूरी तय करते।

पर दोनों ने एक बात कभी नहीं छोड़ी — मेहनत और उम्मीद।


🧱 आज़मगढ़ में प्रैक्टिकल की सीख

पॉलिटेक्निक के बाद उन्होंने *आज़मगढ़* जाकर ग्राउंड पर प्रैक्टिकल काम सीखा।

वहाँ उन्होंने जाना कि किताबों से ज़्यादा सिखाने वाला असली गुरु अनुभव होता है।

कभी धूप में साइट पर खड़े रहना, कभी देर रात तक ड्रॉइंग बनाना — ये सब उनके रोज़मर्रा का हिस्सा बन गया था।

पैसों की तंगी, भूख, और अकेलापन — हर चीज़ ने उनकी परीक्षा ली,

पर दोनों ने एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा।

🎓 लखनऊ की राह और इंजीनियर बनने की कहानी

समय बीतता गया और दोनों ने *लखनऊ जाकर बी.ई. (Bachelor of Engineering)* की पढ़ाई शुरू की।

अब वे बड़े शहर में थे, पर संघर्ष अब भी वही था।

कभी हॉस्टल का किराया नहीं दे पाए, तो दोस्तों के कमरे में रह गए।

कभी **कॉलेज फीस के लिए छोटे-मोटे काम किए**,

लेकिन अपने सपनों को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया।

गाँव के लोग कहते — “इतनी पढ़ाई लिखाई करके क्या होगा?”

पर अजय और अनिल के चेहरे पर बस एक मुस्कान होती,

क्योंकि उन्हें यक़ीन था — *समय सबका जवाब देगा।*

🌆 और आज…

**साल 2025** में वही दोनों लड़के अब सफल **आर्किटेक्ट इंजीनियर (Er. Ajay और Er. Anil)** बन चुके हैं।

उन्होंने अपने संघर्ष और ईमानदारी से ये साबित कर दिया कि सपने चाहे गाँव के छोटे से घर में क्यों न जन्म लें,

अगर मेहनत और लगन हो तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं रहती।

आज वे अपने गाँव *भतडी चक भतड़ी* का नाम रोशन कर रहे हैं —

गाँव के बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं,

और आर्थिक रूप से भी गाँव के विकास की नींव रख रहे हैं।

🌱 एक सच्चा संदेश

उनकी कहानी हमें सिखाती है —

 “कठिनाइयाँ इंसान को रोकती नहीं, उसे मजबूत बनाती हैं।”

अजय और अनिल आज भी वही सादगी भरा जीवन जीते हैं,

पर अब वे अपने कर्म और संघर्ष से कई युवाओं के लिए *प्रेरणा* बन चुके हैं।

गाँव की गलियों से निकलकर शहर की ऊँचाइयों तक पहुँचना कोई आसान सफ़र नहीं था —

पर उन्होंने दिखा दिया कि अगर इरादे सच्चे हों, तो भतडी चक भतड़ी जैसे गाँव से भी आसमान तक पहुँचा जा सकता है। 


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